मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

धुंध गान

धुंध धुंध धुंध, कोहरा कोहरा कोहरा॥
किसने बिखेरा इसे किसने है छोड़ा।
धुंध इकट्ठी करो, लेकर आओ बोरा।
ठंड के कंडों का बना लो बिटोरा।
धुंध धुंध धुंध, कोहरा कोहरा कोहरा॥
चाय के संग आया दूध का कटोरा।
बेटी ने रस लिया पापा ने पकोड़ा।
मम्मी ने ब्लैक टी में नींबू निचोड़ा।
धुंध धुंध धुंध, कोहरा कोहरा कोहरा॥
आग का धुँआ है या बादल-भगोड़ा।
सामने आ जाए तो दिखता है थोड़ा।
सूरज जी आकर इसे मारो धूप-कोड़ा।
 धुंध धुंध धुंध, कोहरा कोहरा कोहरा।।


(ये बालगीत बेटी भव्या के साथ मिलकर पूरा हुआ। कुछ दिन पहले जो धुंध छायी थी, उसे देखकर ही इस गीत की धुन पैदा हुई।)

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-02-2017) को "साहित्यकार समागम एवं पुस्तक विमोचन"; चर्चामंच 2872 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

India Support ने कहा…

इतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद ~Rajasthan Ration Card suchi

newsblog ने कहा…

Very good write-up. I certainly love this website. Thanks!
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