निःशब्द बोल
मैं तो सोच रहा था बोलूँ पर तुम ही थे मौन पिये!
शब्द नहीं थे मुख में मेरे फिर भी तुमसे बोल दिये.
'पियो पिये' संकेत किया मैंने पय पीने के लिये.
नहीं तुम्हें इतनी आशा थी मुझसे मैं कुछ बोलूँगा.
इसीलिए मुख फेर लिया पहले से ही आभास लिये.
रही सदा मुझ पर निराशता* तुमको देने के लिये.
आज़ स्वयं देने को सब कुछ बैठा हूँ अफ़सोस किये.
सोच रहा अब तक मैं कैसे था बिन प्राणों के जिये.
कभी-कभी तो मिलना होता है तुमसे उल्लास लिये.