दृग नहीं पीठ पीछे मेरे
पढ़ सकूँ भाव मुख के तेरे.
चाहूँ देखूँ तुम को लेकिन
बैठा हूँ मैं मुख को फेरे.
अनुमान हाव-भावों का मैं
मुख फेर लगाता हूँ तेरे.
सौन्दर्य आपका है अनुपम
संयम को घेर रहा मेरे.
लेता है मेरा ध्यान खींच
बरबस लज्जा-लूतिका* जाल.
लगता है चूस रहा तेरा
रक्तपा*-रूप निज रक्त-खाल.
* [रक्तपा – जोंक, खून पीने वाली, डायन, पिशाचन; लूतिका – मकड़ी]