सुनो जाने से पहले पौन!
हमें अब देगा श्वासें कौन?
आप यदि जावोगे इस तरह
करेगा हमसे बातें कौन?
याद है मुझको पहली बार
आपने सहलाये थे केश
घटा के, जो आई थी पास
पहनकर शिष्या की गणवेश.
बना हैं नहीं कभी भी चित्र
पौन, निर्गुण हो या तम, इत्र.
धूलि ने पा तेरा आभास
बनाया है सांकेतिक चित्र.
कहा तुमने मुझसे इक बार
कमी तुममें केवल है प्यार
किया करते हो प्राची से,
नव्य का ना करते विस्तार.
अश्रु पलकों पर हैं तैयार
विदा देने से पहले भार
डालते हैं वे नयनों पर
व्यथित मेरे सारे उदगार.
शोध करने वाली ओ पौन!
विदा देते हैं तुमको मौन!
मिलेंगे ना जाने फिर कहाँ?
बिछड़कर मिल पाया है कौन?