क्या हीन भाव आया मन में
जो अपने से ही हुए रुष्ट.
या नहीं मिला जो था मन में
ये चिंता तुमको लगे पुष्ट.
क्या क्रोध आपको है हम पर
ये रेखाएँ क्यूँ मस्तक पर.
क्यूँ भृकुटी को है तान रखा
क्या रक्त खोलता है हम पर.
क्यूँ हुआ ताप तेरे मन में
जो घृणित भाव हैं देखन में.
मुख नयन आपके लाल हुए
चपला चमके जैसे घन में.
यह ब्लॉग मूलतः आलंकारिक काव्य को फिर से प्रतिष्ठापित करने को निर्मित किया गया है। इसमें मुख्यतः शृंगार रस के साथी प्रेयान, वात्सल्य, भक्ति, सख्य रसों के उदाहरण भरपूर संख्या में दिए जायेंगे। भावों को अलग ढंग से व्यक्त करना मुझे शुरू से रुचता रहा है। इसलिये कहीं-कहीं भाव जटिलता में चित्रात्मकता मिलेगी। सो उसे समय-समय पर व्याख्यायित करने का सोचा है। यह मेरा दीर्घसूत्री कार्यक्रम है।
बुधवार, 12 मई 2010
स्वसा-निवेदन
"स्वसा बहिन भगिनी बहना"
भैया! मुझको कुछ तो कहना.
बँधवा हाथों में लो भैया
बहना का नेह निर्मित गहना.
जब भ्रातृहीन कन्या से की
जाती थी पापी की तुलना.
ना बनूँ कहीं वैसी उपमा
तुम छोडो ना मिलना-जुलना.
क्यों भ्रातृहीन कन्या पहले
समझी जाती थी भाग्यहीन.
भ्राता अभाव, पित की मृत्यु
पर खुद करती पति खोज-बीन.
पर मैं भैया तुमसे ऐसा
सम्बन्ध जोड़ने आई हूँ.
मैं उषा और तुम दिवा भ्रात
सूरज-सी राखी लाई हूँ.
[मेरा मन किया कि आज बहन के प्रेम को रूप दिया जाये. इसके लिए दो-महीने का इंतज़ार नहीं हुआ.]
[सूचना — अब से मैं अँधेरे में तीर चलाया करूँगा. टिप्पणी-बॉक्स हटा रहा हूँ. क्योंकि मेरा सारा ध्यान ना आने-वाली टिप्पणियों पर लगा रहता है इससे नव सृजन बाधित होता है.]
भैया! मुझको कुछ तो कहना.
बँधवा हाथों में लो भैया
बहना का नेह निर्मित गहना.
जब भ्रातृहीन कन्या से की
जाती थी पापी की तुलना.
ना बनूँ कहीं वैसी उपमा
तुम छोडो ना मिलना-जुलना.
क्यों भ्रातृहीन कन्या पहले
समझी जाती थी भाग्यहीन.
भ्राता अभाव, पित की मृत्यु
पर खुद करती पति खोज-बीन.
पर मैं भैया तुमसे ऐसा
सम्बन्ध जोड़ने आई हूँ.
मैं उषा और तुम दिवा भ्रात
सूरज-सी राखी लाई हूँ.
[मेरा मन किया कि आज बहन के प्रेम को रूप दिया जाये. इसके लिए दो-महीने का इंतज़ार नहीं हुआ.]
[सूचना — अब से मैं अँधेरे में तीर चलाया करूँगा. टिप्पणी-बॉक्स हटा रहा हूँ. क्योंकि मेरा सारा ध्यान ना आने-वाली टिप्पणियों पर लगा रहता है इससे नव सृजन बाधित होता है.]
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