अमित स्मृति-1
तुम कहते थे - "करो प्रतीक्षा, मैं आने वाला हूँ"
"मीठा बतरस घोल रखो, बस पीने ही वाला हूँ"
ना तुम आये, न ही आयी, कोई सूचना प्यारी.
पाठ हमारे भारी-भरकम, घुटनों की बीमारी.
वज़न अगर कम हो पाये तो चलना सहज हुवेगा.
जिन नयनों के सम्मुख गुजरे, उठकर चरण छुवेगा.
इसीलिए उपवास कर रहे 'पाठ' छंद वाले अब.
वज़न घटेगा, होगा दर्शन अमित, खुलेगा व्रत तब.
अमित स्मृति-2
मुझे बताओ प्रियवर मेरे, कब तक मन का उलट करूँ?
'आना' कहकर मुकर गये, कैसे फिर से आमंत्रण दूँ?
'घर आओ, घर आओ मेरे' हृत-स्वर को मैं बुलत डरूँ.
'अब आये, अब आये प्रियवर' - 'नयन-पलक'-गन बुलट भरूँ.*
मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?
_____________________
शब्दार्थ :
'नयन-पलक'-गन बुलट भरूँ = गन (पिस्तोल) में जैसे बुलट (गोलियाँ) भरी जाती हैं उसी प्रकार मैं अपने नयन के पलकों को खोलकर 'अब आये, अब आये' दर्शन लालसा को भर रहा हूँ.
तुम कहते थे - "करो प्रतीक्षा, मैं आने वाला हूँ"
"मीठा बतरस घोल रखो, बस पीने ही वाला हूँ"
ना तुम आये, न ही आयी, कोई सूचना प्यारी.
पाठ हमारे भारी-भरकम, घुटनों की बीमारी.
वज़न अगर कम हो पाये तो चलना सहज हुवेगा.
जिन नयनों के सम्मुख गुजरे, उठकर चरण छुवेगा.
इसीलिए उपवास कर रहे 'पाठ' छंद वाले अब.
वज़न घटेगा, होगा दर्शन अमित, खुलेगा व्रत तब.
अमित स्मृति-2
मुझे बताओ प्रियवर मेरे, कब तक मन का उलट करूँ?
'आना' कहकर मुकर गये, कैसे फिर से आमंत्रण दूँ?
'घर आओ, घर आओ मेरे' हृत-स्वर को मैं बुलत डरूँ.
'अब आये, अब आये प्रियवर' - 'नयन-पलक'-गन बुलट भरूँ.*
मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?
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शब्दार्थ :
'नयन-पलक'-गन बुलट भरूँ = गन (पिस्तोल) में जैसे बुलट (गोलियाँ) भरी जाती हैं उसी प्रकार मैं अपने नयन के पलकों को खोलकर 'अब आये, अब आये' दर्शन लालसा को भर रहा हूँ.
बुलत = बोलते हुए