छंद —
१] वैदिक छंद
२] लौकिक छंद — मात्रिक छंद , वार्णिक छंद
मात्रिक छंद —
१] सम मात्रिक छंद
२] अर्ध मात्रिक छंद
३] विषम मात्रिक छंद
वार्णिक छंद —
१] सम वार्णिक छंद
२] अर्ध वार्णिक छंद
३] विषम वार्णिक छंद
अन्य छंद भेद :
मात्रिक एवं वार्णिक छंदों के दो-दो अन्य भेद हैं —
१] साधारण मात्रिक छंद – ३२ मात्राओं तक सीमित
२] दंडक मात्रिक छंद – ३२ से अधिक होने पर दंडक मात्रिक छंद कहलाते हैं.
३] साधारण वार्णिक छंद – २६ वर्णों तक सीमित
४] दंडक वार्णिक छंद – २६ से अधिक होने पर दंडक वार्णिक छंद होता है.
मात्रिक और वार्णिक छंदों का विस्तार आगे के पाठों में किया जाएगा. फिलहाल मैं पाठ की जटिलता को देखते हुए सरलतम और रोचक जानकारी पहले दिये दे रहा हूँ. जिससे पाठ में कुछ तो रोचकता आये. अभी छंद-विषयक कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देना जरूरी समझा है इसलिये नवल विद्यार्थी अपना धैर्य नहीं गँवायें तो आगामी पाठों को सहजता से समझ पायेंगे.
शुभाशुभ गण, दग्धाक्षर एवं उनका परिहार :
शुभ गण — मगण, नगण, भगण, यगण
अशुभ गण — जगण, रगण, सगण, तगण
शुभाशुभ विचार का तात्पर्य यह है कि शुभ गणों से ही किसी पद्य का आरम्भ करना चाहिए. छंदारम्भ में अशुभ गण का प्रयोग दोष माना गया है.
['दग्धाक्षर एवं उनका परिहार' पर आगे चर्चा की जायेगी]
प्रश्न : एक कविता दी जा रही है, जिसमें शास्त्र की दृष्टि से दोष बताइये :
बुद्धि से लो काम
हृदय को हावी मत होने दो.
दबा हुआ जो भाव
हृदय में, ज़ाहिर मत होने दो.
वही प्रीति का बीज
बाद में फलदायी तरु होगा.
जिसको सबकी आँख
बचाकर, रोंपा सींचा होगा.