मित्रो, ब्लॉगजगत में ऐसे कई नाम हैं जिनसे ब्लॉग-साहित्य की अपनी एक पहचान बन गयी है. उनमें ही कुछ नाम ऐसे हैं जिन्होंने 'पाठशाला' को चलाने की लगातार प्रेरणा दी. प्रोत्साहन पाकर कुछ समय बाद ही मैं इस शिक्षण के नाट्य को करने में रस लेने लगा. मन में आया कि एक परीक्षा भी ले ही लूँ, फिर अवसर मिले न मिले. आज की परीक्षा छोटी-सी है. मन में तो तमाम प्रश्न थे किन्तु, कहीं परीक्षा देखकर कोई पास तक न आये इसका भय भी बना रहा. इसलिए अच्छी प्रतिक्रिया मिलने पर ही आगामी प्रश्न-पत्रों का सुख-वितरण करूँगा. अपने सुभीते से जितना चाहे समय लीजिये. इस बहाने आपका फिर से पिछली पोस्टों पर टहलना भी हो जाएगा.
प्रश्न 1 : किसी भी दो काव्यांशों के कवि को पहचान कर उनके रचना के भावार्थ को स्पष्ट करें. [5×2=10]
(क़)
हकीकत का तो बिच्छू भी छुआ जाता नहीं तुमसे.
ख़यालों के बड़े सौ साँप, दस अजगर तो मत मारो .
(ख़)
रात गला काटती है
कई ज़ज्बात मरते हैं
इक ज़हरीली सी कड़वाहट
उतर जाती है हलक में
(ग)
भृकुटियों पर उग आए,
उस संतोष के आगे,
थर्रा जाता है.
एक क्षण को,
दबंग जेठ भी.
(घ)
क्यों कि
जो कहती हूँ
वो करती नहीं
जो सोचती हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहती नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीती चली जाती हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलती चली जाती हूँ.
हकीकत का तो बिच्छू भी छुआ जाता नहीं तुमसे.
ख़यालों के बड़े सौ साँप, दस अजगर तो मत मारो .
(ख़)
रात गला काटती है
कई ज़ज्बात मरते हैं
इक ज़हरीली सी कड़वाहट
उतर जाती है हलक में
(ग)
भृकुटियों पर उग आए,
उस संतोष के आगे,
थर्रा जाता है.
एक क्षण को,
दबंग जेठ भी.
(घ)
क्यों कि
जो कहती हूँ
वो करती नहीं
जो सोचती हूँ
वो होता नहीं
जो होता है
वो चाहती नहीं .
इसी ऊहापोह में
जीती चली जाती हूँ
क्षण - प्रतिक्षण
परिस्थितियों में
ढलती चली जाती हूँ.
प्रश्न 2: ब्लॉग जगत में कौन सबसे आगे ? कोई पाँच बताइये. ...........[5]
३. गीतिमयता में ............
४. हाजिर जवाबी में ...........
५. अत्यधिक भाव प्रवणता में .........
६. मुग्ध लेखन में ..........
प्रश्न 3 : स्वर का तापमान पहचानिए : ........... [5]
छूट गया मिलना-जुलना सब
पुनः मिलेंगे शायद न अब
जितना तुमसे दूर चलूँ
आ जाता लौट वहीँ
कहो कुछ बेशक आप नहीं .
http://darshanprashan-pratul.blogspot.com/2010/11/blog-post_21.html
प्रश्न 4 : सभी प्रश्नों के उत्तर दें : ................ [5×2=10]
१. पाठशाला के संचालक का काव्यशास्त्र के किस आचार्य से मतभेद हुआ था?http://darshanprashan-pratul.blogspot.com/2010/11/blog-post_21.html
प्रश्न 4 : सभी प्रश्नों के उत्तर दें : ................ [5×2=10]
२. किस कविता में अनुप्रास के छठे भेद को देखा गया है?
३. 'दर्शन प्राशन' की कौन-सी कविता चित्र अलंकार का अच्छा उदाहरण है?
४. एकमात्र कविता से अपने ब्लॉग की कायापलट कर देने वाले कवि-हृदय लेखक का क्या नाम है?
५. रंग और स्वर का संगम किस ब्लॉग की पहचान है?
प्रश्न 5 : रचनाओं को पहचानिए किस कवि की हैं? .................. [10×2=20]
१) तुम हो जैसे अथाह जलराशि,
और मैं हूँ
एक बिना पतवार की नौका।
पूरी तरह से,
तेरी मौजों के सहारे।
२) सुनो अब्बा!
और मैं हूँ
एक बिना पतवार की नौका।
पूरी तरह से,
तेरी मौजों के सहारे।
२) सुनो अब्बा!
मिले किसी मस्जिद,
तुम्हारा अमुक खुदा.
तो कहना फ़क्र से,
तुम बेहतर खुदा हो.
३) है बिना निमंत्रण के आना.
आना फिर आते ही जाना.
ओ स्वेद! बने तुम हठधर्मी
आमंत्रण पर अच्छा आना.
४) बुजुर्गियत को अक्ल का पैमाना स मझते हैं वो
उम्र मेरी अनायास ही गुनहगार हो गयी।
५) अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
६) अधिकार के सारे शब्द तुम्हारे हाथों में
और मेरे हाथों में सारे कर्तव्य?
७) मंदिरों में बंद ताला, हर हृदय है कुटिल-काला
चाटते दीमक-घुटाला, झूठ का ही बोलबाला
जापते हैं पवित्र माला, बस पराया माल आये--
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
८) खालिक हो तुम कायनात के मालिक तुम हो
क्या है रीता तुमसे जो बता इन खाफकानो को
९) तेरी भक्ति की ज़रा स्याही पिला मेरी कलम को...
ऋण चुकाने की धरा का शक्ति दे मेरी कलम को...
जब लिखूं मैं सत्य मेरी लेखनी न लड़खड़ाए...
तू अभय का ग्रास कोई अब खिला मेरी कलम को
१०) अटूट रिश्ता है चोटों से
जख्मों को सहलाना क्या
गहरे घाव ह्रदय में लेकर
खिल खिल कर हँस पाना क्या
मैं क्या जानू जख्मीं होकर घाव भरे भी जाते हैं
छेड़ छाड़ मीठी झिड़की, आलिंगन का सुख होता क्या.
तुम्हारा अमुक खुदा.
तो कहना फ़क्र से,
तुम बेहतर खुदा हो.
३) है बिना निमंत्रण के आना.
आना फिर आते ही जाना.
ओ स्वेद! बने तुम हठधर्मी
आमंत्रण पर अच्छा आना.
४) बुजुर्गियत को अक्ल का पैमाना स
उम्र मेरी अनायास ही गुनहगार हो
५) अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
६) अधिकार के सारे शब्द तुम्हारे हाथों में
और मेरे हाथों में सारे कर्तव्य?
७) मंदिरों में बंद ताला, हर हृदय है कुटिल-काला
चाटते दीमक-घुटाला, झूठ का ही बोलबाला
जापते हैं पवित्र माला, बस पराया माल आये--
व्यर्थ हमने सिर कटाए, बहुत ही अफ़सोस, हाय !
८) खालिक हो तुम कायनात के मालिक तुम हो
क्या है रीता तुमसे जो बता इन खाफकानो को
९) तेरी भक्ति की ज़रा स्याही पिला मेरी कलम को...
ऋण चुकाने की धरा का शक्ति दे मेरी कलम को...
जब लिखूं मैं सत्य मेरी लेखनी न लड़खड़ाए...
तू अभय का ग्रास कोई अब खिला मेरी कलम को
१०) अटूट रिश्ता है चोटों से
जख्मों को सहलाना क्या
गहरे घाव ह्रदय में लेकर
खिल खिल कर हँस पाना क्या
मैं क्या जानू जख्मीं होकर घाव भरे भी जाते हैं
छेड़ छाड़ मीठी झिड़की, आलिंगन का सुख होता क्या.