हमने है ले लिया क्षणिक सुख
देख आपको फिर प्रफुल्ल.
जब थे नयनों से दूर बहुत
यादें करती थीं खुल्ल-खुल्ल.
हम दुखी रहे यह सोच-सोच
तुम बैठ गये होकर निराश.
अथवा आते हो नहीं स्वयं
भयभीत कर रहा नेह पाश.
जैसे बदले हैं भवन कई
तुमने दो-दो दिन कर निवास.
वैसे ही क्या अब बदल रहे
चुपचाप छोड़ निज उर-निवास.
फिर भी लेते हैं ढूँढ नयन
तुमको, चाहे कर लो प्रवास.
होते उर में यदि भवन कई
तुम भवन बदलते वहीं, काश!