श्वासों का हो गया समन्वय
हृदय अनल के घेरे में
हो ढूँढ रहा था शीतलता-आलंबन।
अनिल दौड़ता होकर निर्भय
गरम-गरम श्वासों का चलना
जला रहा था हृदय का नंदन-वन।
शीत्कार की ध्वनि, संकुचित
भविष्य-द्वार, होता पर-शोषित
कसी जा रही थी बाहों की जकड़न।
संयम था आश्चर्य चकित
निज पाक अनल में डाल दिया
किसने चोरी से विषैला आलिंगन।
कंदर्प-रति षड़यंत्र सफल
कर, मुस्काते जाते ध्वनि करते
निज हाथों से करतल, अन्तस्तल।
संयम ने फिर जाल बिछाया
काम रती* को दंड दिलाकर
जोड़ दिया दुर्बल मर्यादा बंधन, ... क्रन्दन!!
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*रती = सही शब्द रति
प्रश्न : उपयुक्त कविता किस कोटि की रचना कही जानी चाहिए ?
— शुद्ध शृङ्गार
— शृङ्गार रसाभास
— शान्त रस
— शान्त रसाभास