गुरुवार, 26 मई 2011

विषैला आलिंगन

श्वासों का हो गया समन्वय 
हृदय अनल के घेरे में 
हो ढूँढ रहा था शीतलता-आलंबन।  

अनिल दौड़ता होकर निर्भय
गरम-गरम श्वासों का चलना 
जला रहा था हृदय का नंदन-वन। 

शीत्कार की ध्वनि, संकुचित 
भविष्य-द्वार, होता पर-शोषित 
कसी जा रही थी बाहों की जकड़न।  

संयम था आश्चर्य चकित 
निज पाक अनल में डाल दिया 
किसने चोरी से विषैला आलिंगन। 

कंदर्प-रति षड़यंत्र सफल 
कर, मुस्काते जाते ध्वनि करते 
निज हाथों से करतल, अन्तस्तल। 

संयम ने फिर जाल बिछाया 
काम रती* को दंड दिलाकर 
जोड़ दिया दुर्बल मर्यादा बंधन, ... क्रन्दन!!  
__________
*रती = सही शब्द रति

प्रश्न : उपयुक्त कविता किस कोटि की रचना कही जानी चाहिए ?
— शुद्ध शृङ्गार
— शृङ्गार रसाभास 
— शान्त रस 
— शान्त रसाभास