अश्रुओं से जब मैं दिन-रात
स्वयं को करुणामय संगीत
सुनाया करता अब वो बात
नहीं वैसी होती परतीत.
आपका है मुझ पर अधिकार
किया क्योंकि तुमने उपकार.
आपका मिलना बारंबार
कल्पना में आ देना प्यार.
अहा! तुम ही हो मेरे मीत
नहीं भूलूँगा तेरी प्रीत
मृतमय है मेरा तन-साज
अमरता का हो तुम संगीत.