उड़ रहे हृदय में दो विमान*
सपनों का ईंधन* ले-लेकर.
वे जाल फैंकते हैं विशाल
बंदी करने पिय-उर बेघर.
पिय का उर पर हर बार बचा
छोटा था जाल छविजाल तुल.
शर छोड़ रहे दोनों विमान
पुष्पित करने हृदयस्थ-मुकुल.
पर नयन-बाण सम्मुख सब शर
अपनी लघुता को दिखा रहे.
निश्चल नयनों के चपल बाण
रण-कौशल अब तो सिखा रहे.
चख लिया पराजय का जब मुख
तब नहीं हुआ किञ्चित भी दुःख
दोनों विमान चक्कर खाते
नीचे गिरते करते 'सुख-सुख'.
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दो विमान --- कल्पना और आकर्षण
सपनों का ईंधन ---- उड़ान भरने के लिये आवश्यक ऊर्जा
पिय-उर बेघर ---- पिय का हृदय अपने ठिकाने पर नहीं, इसलिये बेघर कहा.
छविजाल --- सौन्दर्य
तुल ---- तुलना में