क्या कहूँ आपको निर्भय हो?
जिसमें ना वय संशयमय हो.
कहने में पिय जैसी लय हो.
जिसकी हिय में जय ही जय हो.
या बहूँ धार में धीरज खो?
तज नीति नियम नूतनता को.
बस नारी में देखूँ रत को?
रसहीन करूँ निज जीवन को?
क्या सहूँ ह्रदय की संयमता?
घुटता जाता जिसमें दबता.
नेह, श्रद्धा, भक्ति औ' ममता
क्या छोड़ सभी को सुख मिलता?
अय, कहो मुझे तुम भैया ही.
मैं देख रहा तुममें भावी
सपनों का अपना राजभवन.
तुमसे ही मेरा राग, बहन.
किस तरह समय में परिवर्तन
आयेगा — ये कैसे जानूँ?
संबंध आपसे जो अब है
बदलेगा — ये कैसे मानूँ?
सब रूप आप में ही अवसित
दिखते हैं मुझको नारी के .
क्या करूँ आपको मैं प्रेषित
हिय भाव सभी संचारी के?