लो खुला द्वार
मैंने उधार
माँगा चन्दा से चंद तेल।
"दिविता से लो" कह टाल दिया
"मैं शीतल, वो पावक-गुलेल।"
हेमंत हार
ओढ़े तुषार
राका से करके खड़ा मेल।
अलि पुण्डरीक में छिपा-छिपा
केसर से करता काम-केलि।"
कवि था अशांत
पर शब्द शांत
अब तक थे सब कल्पना गेल।
चन्दा दिविता हेमंत देख
कर कलम शब्द कवि रहे खेल।