प्रथम बार
था मौन संयमित
कोकिल का कल गान
संभवतः कर रहा
पिकानद आने का अपमान।
अंधकार
छिपकर भी विचलित
खोता था पहचान
उषा-सुंदरी आयी
करता अंगहीन प्रस्थान।
शयन-कक्ष
में रमणी व्याकुल
करने को वपु-दान
पर प्रियतम से कर बैठी थी
वह पहले ही मान।
कोप-भवन
से निकल कोकिले!
पंचम स्वर आलाप
मान मिटे रमणी आवे
पी आलिंगन में आप।