अब तक आपने 'प्रत्यय' का अर्थ suffix के रूप में ही जाना होगा और मैंने भी व्याकरण अध्ययन के समय उपसर्ग के साथ इससे पहचान की थी. किन्तु जब छंद-ज्ञान करने को पुस्तकों के बीच घूमा तो इसके एकाधिक अर्थ-रूपों से परिचय हुआ. प्रत्यय अर्थात ज्ञान, बुद्धि, विश्वास, शपथ, प्रमाण, रूप-निश्चय. किन्तु छंदों के भेद और उनकी संख्याएँ जानने की रीति भी प्रत्यय कहलाती है.
प्रत्यय के अन्य अर्थ हैं : सम्मति, निर्णय, चिह्न, आवश्यकता, व्याख्या, विचार, आचार, प्रसिद्धि, कारण, हेतु, छिद्र, सहायक, स्वाद.
एक शब्द के इतने सारे अर्थ जानने के बाद मन में प्रश्न उठता है कि एक शब्द के विविध अर्थ कैसे संभव हैं? या, एक शब्द में से अनेक अर्थ कैसे निकल पड़ते हैं?
प्रत्यय का लक्षण – प्रत्यय का अर्थ है ज्ञान. ज्ञान के साधन को भी प्रत्यय कह सकते हैं. इस दृष्टि से छंद-शास्त्र में प्रत्यय उस विधा को कहेंगे जो छंद-भेद संख्या आदि का विस्तृत ज्ञान कराये.
"जिन साधनों से छंदों के भेद, उनकी संख्या तथा उनके पृथक्-पृथक् रूप आदि का बोध हो, उन्हें प्रत्यय कहते हैं."
छंद-विधा का विशद ज्ञान कराने वाले साधन अर्थात प्रत्यय नौ हैं :
१] प्रस्तार, २] सूची, ३] नष्ट, ४] उद्दिष्ट, ५] पाताल, ६] मेरु, ७] खंड-मेरु, ८] पताका, और ९] मर्कटी.
प्रस्तार — शब्दार्थ द्वारा ही प्रस्तार का अभिप्राय स्पष्ट होता है. [विस्तार अथवा फैलाव]
"जिस साधन से यह ज्ञात हो कि किसी जाति के किस छंद का कितनी संख्या तक और किन-किन रूपों में फैलाव हो सकता है, उसे 'प्रस्तार' कहते हैं."
प्रस्तार का आधार अंकगणित की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मूल और निर्दिष्ट संख्याओं के आकलन के द्वारा उनके संभाव्य समाहारों का ज्ञान होता है. छंदों का मूल आधार 'वर्ण' एवं 'मात्रा' है, तदनुसार प्रस्तार के दो भेद हैं –
[१] वर्ण प्रस्तार और [२] मात्रा प्रस्तार
[१] वर्ण प्रस्तार :
जिस साधन के द्वारा वार्णिक छंदों की किसी जाति के भेदों का स्वरुप ज्ञात किया जाये, वह वर्ण-प्रस्तार कहलाता है.
उदाहरण :
(क़) दो वर्णों की (अत्युक्ता) जाति का प्रस्तार —
संख्या ......................... रूप
.. 1 ............................ .. S S
.. 2 .............................. I S
.. 3 .............................. S I
.. 4 .............................. I I
इस प्रकार दो वर्णों की जाति में कुल चार छंद बन सकते हैं.
पहला छंद :
[ S S ]
आओ
बैठो
खाओ
लेटो
सोना
चाहो
सो लो
सेठो!
दूसरा छंद :
[ I S ]
जु ड़ा
हुआ
गवाँ
दिया.... ..............मतलब पूँजी
जु ड़ा
हुआ
विदा
किया. ................ मतलब सम्बन्ध.
जु ड़ा
हुआ
तु ड़ा
लिया. .................. मतलब बँटवारा पैत्रिक संपत्ति का.
जु ड़ा
हुआ.
जु ड़ा
दिखा. ................ मतलब जो भी एक बार टूट कर जुड़ता है तो उसमें गाँठ पड़ी दिखायी देती ही है.
तीसरा छंद :
[ S I ]
राम
नाम
सत्य
होत.
सत्य
नाम
गत्य
होत.
राम
नाम
बीज
बोत.
राम
नाम
खेत
जोत.
या फिर
दोस्त
दोस्त
ना र
हा पि
यार
प्यार
ना र
हा.......... ये पंक्ति भी अतियुक्ता जाति के छंद की ध्वनि लिए है.
चौथा छंद :
[ I I ]
तन
मन
धन
सब
ऋण
कर.
तिल
भर
सुख
दुःख
तृण
कर.
... इस अजीबोगरीब कविताई से मैंने केवल यह बताना चाहा है कि छंद केवल कुछ शब्दों का समुच्चय मात्र नहीं है वह किसी इकलौते शब्द में भी निहित हो सकता है. बस उस शब्द में यदि कहने वाला आनंद प्रविष्ट कर दे तो वह छंद हो जाता है. एक सरल उदाहरण से कहता हूँ :
कभी-कभी कवि या गीतकार कोई रचना करता है... पढ़ने में बिलकुल नीरस होती है.. किन्तु संगीत की समझ वाला गायक उसे गाता है तो वह गेय हो जाता है. लता जी ने ऎसी कई रचनाओं को गाकर गीत की श्रेणी में ला दिया जो पढ़ने पर नीरसता लिये थे.
कुछ रचनाओं का द्रुतम पाठ उन्हें गेयता दे देता है तो कुछ रचनाओं का विलंबित/ अति विलंबित पाठ उन्हें मधुरम गीत की श्रेणी में ला देता है. और कुछ का पाठ वाकयंत्र के विविध आयामी प्रयोग से उत्कृष्ट हो जाता है.
मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि छंद की सभी जातियों का परिचय अति साधारण तरीके से करा सकूँ. इस बार प्रत्यय के केवल वर्ण-प्रस्तार में अत्युक्ति जाति के छंद को बताने की कोशिश की है.