तुम चले, चला धीरे-धीरे
मन मेरा चुपके से पीछे।
तुम रुके, नहीं रुक सका हाय
संयम मेरे मन को खींचे।
क्यूँ रुके, नहीं तब था जाना
अब जान गया चख हैं तीखे।
रुक जाता तो मन मर जाता
आखेट-कुशलता बिन सीखे।
यह ब्लॉग मूलतः आलंकारिक काव्य को फिर से प्रतिष्ठापित करने को निर्मित किया गया है। इसमें मुख्यतः शृंगार रस के साथी प्रेयान, वात्सल्य, भक्ति, सख्य रसों के उदाहरण भरपूर संख्या में दिए जायेंगे। भावों को अलग ढंग से व्यक्त करना मुझे शुरू से रुचता रहा है। इसलिये कहीं-कहीं भाव जटिलता में चित्रात्मकता मिलेगी। सो उसे समय-समय पर व्याख्यायित करने का सोचा है। यह मेरा दीर्घसूत्री कार्यक्रम है।