शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

कूड़ाघर

गैया जातीं कूड़ाघर
रोटी खातीं हैं घर-घर
बीच रास्ते सुस्तातीं
नहीं किसी की रहे खबर।

यही हाल है नगर-नगर
कुत्तों की भी यही डगर
बोरा लादे कुछ बच्चे
बू का जिनपर नहीं असर!

छोड़ा था जो थाली में
नहीं गया जो नाली में
भूखा जिसकी लालच में
नहीं छोड़ता कोर कसर।

जो हमने कागज़ फाड़े
डस्टबीन बिस्तर झाड़े
किया इकट्ठा पिछवाड़े
खत्म हुआ उपयोग सफर।

'क' से होता कूड़ाघर
'ख' से सबकी रखो खबर
'ग' से गैया गोबर कर
'घ' से घूमो जा घर-घर।