छंद का तीसरा पाठ शुरू करूँ, उससे पहले अपनी एक विशेष अनुभूति को व्यक्त कर दूँ .....
फिर वही मधुर शब्दों का स्वर
गुजरा कानों की सड़कों पर
फिर वही रूप जो निराकार
तिरता नयनों की पलकों पर
फिर वही हास मीठा-मीठा
दौड़ा है किसके अधरों पर
फिर वही वास धीरे-धीरे
बैठी है मेरे नथुनों पर
पिक आम बाग़ में 'पिया पिया'
कर, आया है रसिया होकर
ओ सुधाश्रवा! विष घोलो ना
'भैया' कह दो बहना होकर.