शुक्रवार, 4 मई 2012

सुन्दर शाप

रहा करता हूँ सबसे दूर
मिलन फिर भी होता भरपूर
जिन्हें मैं आने से रोकूँ
वही घुसते आँखों में घूर.
जहाँ जाता हूँ सारे साथ
चले आते हैं वे चुपचाप
भोर दिन संध्या हो या रात
निरंतर देते सुन्दर शाप.
दिवा में यादों का ले रूप
सोच को ले जाते हैं दूर
रात में स्वप्नलोक का कूप
घुमा लाते हैं मद में चूर.