तेरे जैसी सुन्दर प्यारी
मुझको लगती तेरी छोरी.
तुम हो कविता उल्लासमयी
वो है ममता-मूरत लोरी.
सोने को बार-बार आँखें
पलकों को ओड़ रहीं मोरी.
पर नींद नहीं आती मुझको
बिन देखे कविता की छोरी.
थक जातीं कर-कर इंतज़ार
रोने लगतीं आँखें मोरी.
माँ हाथ फेर करती दुलार
कहती कविता से 'भेजो री'.
तब निकल चली माँ मुख से ही
आई सम्मुख चोरी-चोरी.
उसके जाते ही नयन मुंदे
जादूगरनी कविता-छोरी.
कविता की छोरी - लोरी
(अर्पिता जी को समर्पित)
यह ब्लॉग मूलतः आलंकारिक काव्य को फिर से प्रतिष्ठापित करने को निर्मित किया गया है। इसमें मुख्यतः शृंगार रस के साथी प्रेयान, वात्सल्य, भक्ति, सख्य रसों के उदाहरण भरपूर संख्या में दिए जायेंगे। भावों को अलग ढंग से व्यक्त करना मुझे शुरू से रुचता रहा है। इसलिये कहीं-कहीं भाव जटिलता में चित्रात्मकता मिलेगी। सो उसे समय-समय पर व्याख्यायित करने का सोचा है। यह मेरा दीर्घसूत्री कार्यक्रम है।
सोमवार, 4 जनवरी 2010
तीन पागल
पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल
एक वो
जो सुनता न किसी की
बस कहता,
हँसता
कर बात
बिना हँसी की.
दूजा वो
जो न सुनता न कहता
बस रहता
खोया खोया
लगा खोजने में खुद को.
तीसरा वो
जो बडबडाता
बिना सोच
कर देता
सोच प्रधान बातें
तब तर्कहीन बातें भी
तर्क की कसौटी पर
कसने को
व्याकुल हो
uthtaa है, वह पागल
पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल.
तीन तरह के पागल
एक वो
जो सुनता न किसी की
बस कहता,
हँसता
कर बात
बिना हँसी की.
दूजा वो
जो न सुनता न कहता
बस रहता
खोया खोया
लगा खोजने में खुद को.
तीसरा वो
जो बडबडाता
बिना सोच
कर देता
सोच प्रधान बातें
तब तर्कहीन बातें भी
तर्क की कसौटी पर
कसने को
व्याकुल हो
uthtaa है, वह पागल
पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल.
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