बुधवार, 16 मार्च 2011

'दर्शन' होली

यौवन कगार पर खड़ा हुआ
प्यासा मन खेल रहा होली
सपनों से, सपने रूठ-रूठ
जाते हैं, जब आँखें खोलीं।

पलकों के अन्दर नयनों से
अंगुली खेलें काज़ल होली
अंगुष्ठ खेलता बहना का
भैया के माथे पर होली।
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माधव .. अपनी 'श्री' से खेले
नारी ...  अपनी 'ह्री' से खेले
देवर ... भाभी जी से खेलें
औ' हम ... खेलें 'दर्शन' होली।