पलकों ने खोला दरवाजा
तो पुतली ने बोला - "आजा,
क्यों शरमाते भैया राजा!
मैं नेह लिये आयी ताज़ा".
कल सोने से पहले बोली -
"भैया, बन जाओ हमटोली.
मेरी उठने वाली डोली
फिर खेल न पायेंगे होली".
चल खोजें अपना भूतकाल
मैं रोली थी तुम रवि-भाल.
भू पर फैला था छवि-जाल.
पर राका बन आ गई काल.
हल होने दें सीधा-सादा.
मैं करती हूँ तुमसे वादा.
यदि पाऊँगी कुछ भी ज़्यादा
हम बाँटेंगे आधा-आधा.