प्रकाश औ' प्रकाशिका
कर्तव्य साथ छोड़कर
दे रहे थे देह को
विराम प्राचि-गेह में।
प्रकाश ताप व्याज से
घटा-विधान ओढ़कर
ले रहा था सुबकियाँ
अश्रुओं को छोड़कर।
मलिनता मिटाने को
खींचती घटा-विधान
धीरे से खाँसती, पिय
आई, उठो अंशुमान !