पिता-पुत्री का प्रेम कैसा हो?.... इस कविता में एक रूपक के माध्यम से बताना चाहा है.
जाने क्या फिर सोच घटा के पास चला मारुत आया.
केशों में अंगुलियाँ डाल फिर धीरे-धीरे सहलाया.
सुप्त घटा थी जगने वाली दूज पहर होने आया.
कोस रहा मारुत अपने को क्यूँ कल वो अंधड़ लाया.
थकी पड़ी थी आज़ घटा-तनया तन-मुख था कुम्हलाया.
करनी पर अपनी मारुत तब देख उसे था पछताया.
खुला प्राचि का द्वार जगाने था बालक सूरज आया.
'जागो-जागो हुआ सवेरा' पीछे से कलरव आया.
उठी घटा तब मारुत ने चूमा छाती से चिपकाया.
'क्षमा करो बेटी मुझको मैंने तुमको कल दौड़ाया.
'नहीं पिताजी नहीं, आप तो दौड़ रहे थे नीचे ही.
मैं तो ऊपर थी, पाने को साथ तुम्हारा दौड़ रही.' [गीत]
[बेटी 'अमृता' के लिए]