मंगलवार, 10 अगस्त 2010

साखी

मुझे तुमने माना है क्या?
बताना है तुमको अथवा
समझ जाऊँगा राखी पर
पिया या प्यारा-सा भैया.

आपका आँचल हरा-भरा
सदा लहराता है, पुरवा!
आपका यौवन छिपा-छिपा
हमीं पर करता है धावा.

अरी! जब आँचल हरा ज़रा
राह चलते पर छू जाता
आपका, नख से शिख तक का
हमारा गात काँप जाता.

बांधनी है तो बोलो री
हमारे हाथों पर राखी.
न देखो अब चोरी-चोरी
सभी शरमाते हैं साखी.


ये बोल एक वृक्ष मदमाती वायु से बोल रहा है जिसका आँचल हरियाली है.

[साखी — वृक्ष, यहाँ शाखाओं वाले को साखी कहा गया है]
जब तक अपरिचय रहता है तब तक सम्बन्ध निर्धारण नहीं होता. इसलिये मनोभावों के स्वच्छंद पक्ष को रखने का प्रयास करते भाव. आरोपण प्रकृति पर किया गया है.