द्वार पर शुक बैठा-बैठा
राम का नाम लिया करता.
दिया था जो तुमने उपहार
वही है उसका कारागार
बद्ध करना उसका विस्तार
कहाँ तक किया उचित व्यवहार.
द्वार पर शुक बैठा-बैठा
काल की बाट जुहा करता.
रूठता प्राणों से पवमान
देह जाने को है श्मसान
आपका बहुत किया सम्मान
नेह का होता है अवसान.
द्वार पर शुक बैठा-बैठा
आपको कोसा है करता.
किया जब मैंने उसको मुक्त
जगा जैसे युग से हो सुप्त
किया मेरा उसने जयनाद
द्वार पर स्वयं हुआ नियुक्त.
द्वार पर शुक बैठा-बैठा
आपका नाम लिया करता.