शनिवार, 4 अगस्त 2012

न्यायकारी की भेद दृष्टि

ओ न्यायकारि परमेश्वर !
तू न्याय एक सा तो कर
उर्वरा और ऊसर पर
वर्षण करके न चुपकर!!

उर्वरा पे है हरियाली
ऊसर की गोदी खाली
ये न्याय तुम्हारा कैसा!
दोनों के तुम हो माली!!

ये भेद दृष्टि अनुचित है
ऊसर में भी संचित है
अंकुरित करन की इच्छा
पर रोध हुआ किञ्चित है.

कैसे भी उसे हटाओ
तुम जिस भी रस्ते आओ
मैं तुझे पा सकूँ ईश्वर!
कुछ चमत्कार दिखलाओ!!

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न्यायकारि = न्यायकारी