रविवार, 18 सितंबर 2011

छंद चर्चा .... मात्रिक छंद ........... पाठ ७

प्राचीन आचार्यों ने एक मात्रा से लेकर बत्तीस मात्राओं तक के पाद वाले छंदों का वर्णन किया है। सुविधा के लिये इनकी ३२ जातियाँ बना दी गई हैं और प्रस्तार-रीति द्वारा प्रत्येक जाति में जितने छंद बनने संभव हैं, इनकी संख्या का उल्लेख भी कर दिया गया है, जो कि इस प्रकार है — 
मात्रा (प्रतिपाद) ................ जाति ......................... छंद प्रस्तार संख्या 
....... 1 ............................. चान्द्रिक .................... 1
....... 2 ............................. पाक्षिक ..................... 2
....... 3.............................. राम .......................... 3
....... 4 ............................. वैदिक ....................... 5
....... 5 ............................. याज्ञिक ..................... 8
....... 6 ............................. रागी ......................... 13
....... 7 ............................. लौकिक .................... 21
....... 8 ............................. वासव ....................... 34
....... 9 ............................. आँक ......................... 55
....... 10 ........................... दैशिक ....................... 89
....... 11 ........................... रौद्र ........................... 144
....... 12 ........................... आदित्य .................... 233 
....... 13 ........................... भागवत .................... 377
....... 14 ........................... मानव ....................... 610
....... 15 ........................... तैथिक ...................... 987
....... 16 ........................... संस्कारी ................... 1597
....... 17 ........................... महासंस्कारी ............ . 2584
....... 18 ........................... पौराणिक .................. 4181
....... 19 ........................... महापौराणिक ............  6765
....... 20 ........................... महादैशिक .................. 10946
....... 21 ........................... त्रैलोक ........................ 17711
....... 22 ........................... महारौद्र ....................... 28657
....... 23 ........................... रौद्रार्क ........................ 46368
....... 24 ........................... अवतारी ..................... 75025
....... 25 ........................... महावतारी .................. 121393
....... 26 ........................... महाभागवत ................ 196418
....... 27 ........................... नाक्षत्रिक ......................317811
....... 28 ........................... यौगिक ........................514229
....... 29 ........................... महायौगिक ..................832040
....... 30 ........................... महातैथिक ...................1346269
....... 31 ........................... अश्वावतारी ...................2178309
....... 32 ........................... लाक्षणिक ....................3542578

आप सोच रहे होंगे ... इन जातियों के नामकरण का आधार क्या है? कैसे इतनी संख्या में छंद-प्रस्तार हो जाते हैं? ... दरअसल हम जो भी काव्य-रचना करते हैं... वह किसी न किसी वर्ग में आती है... यदि हम इस श्रेणी के वर्गीकरण पर शोध करें तो अवश्य अपनी मात्रिक काव्य-रचना को पहचान पायेंगे कि वह किस जाति के किस प्रस्तार-भेद में आयेगी..... जितना सरल है अपनी किसी काव्य-रचना की जाति पहचानना .. उतना ही कठिन है उसका अनुक्रमांक ढूँढ़ना.... क्योंकि इस क्षेत्र में उपलब्ध साहित्य या तो अलिखित रहा है अथवा संभव है कि यवन व मलेक्ष्यों के आक्रमणों में स्वाहा हुआ हो! ... जो हुआ सो हुआ पर अब नए सिरे से इस क्षेत्र में शोध की आवश्यकता बन पड़ी है... इस विषय पर भी कभी चर्चा करने का मन है. अस्तु, आज के विषय पर लौटता हूँ ...

विभिन्न संख्याओं के प्रतीक रूप में प्रयुक्त होने वाले संज्ञा शब्दों के आधार पर ही उपर्युक्त छंद-जातियों के नाम रखे गये हैं. 
उदाहरण — 
संख्या  ............संख्या सूचक शब्द ....................................................................छंद जाति नाम 
.. 1 ................चन्द्र ......................................................................................... चान्द्रिक 
.. 2 ................पक्ष (कृष्ण, शुक्ल) .................................................................... पाक्षिक 
.. 3.................राम (रामचंद्र, बलराम, परशुराम) ............................................... राम 
.. 4 ................वेद (ऋक्, यजु, साम, अथर्व) ..................................................... वैदिक 
.. 5 ................यज्ञ (ब्रह्म, देव, अतिथि, पितृ, बलिवैश्य) .................................... याज्ञिक
.. 6 ................राग (भैरव, मल्हार, श्री, हिंडौल, मालकोश और दीपक कखेड़ा) ............. रागी 
.. 7 ................लोक ........................................................................................ लौकिक 
.. 8 ................वासु ......................................................................................... वासव
.. 9 ................अंक (१ से ९ तक) ..................................................................... आँक 
...10 ...............दिशाएँ ................................................................................... दैशिक 
...11 ...............रुद्र ........................................................................................ रौद्र 
...12 ................आदित्य (सूर्य, अर्क) ............................................................. आदित्य 
...13 ................भागवत (इसमें १३ स्कंध हैं)  ................................................. भागवत 
...14 ................मन्वंतर ............................................................................... मानव 
...15 ................तिथि (प्रथमा से अमा या पूनो तक) ....................................... तैथिक 
...16 ................संस्कार ............................................................................... संस्कारी 
...18 ................पुराण ................................................................................. पौराणिक 
...24 ................अवतार .............................................................................. अवतारी
...27 .................नक्षत्र ................................................................................ नाक्षत्रिक 
...32 .................लक्षण ............................................................................... लाक्षणिक 

अन्य जातियों के नाम भी इन्हीं संख्यावाचक शब्दों के संयुक्त रूप पर आधारित हैं अथवा किसी विशेषण द्वारा उनका संकेत किया गया है. यथा : 
— १० मात्राओं की जाति = दैशिक ; २० मात्राओं की जाति = महादैशिक 
— २४ मात्राओं की जाति = अवतारी ; ७ संख्यासूचक शब्द = अश्व (सूर्य रथ के घोड़े, जो सात दिनों या वारों या सात रश्मि-रंगों के प्रतीक हैं. इस तरह ३१ मात्राओं की जाति 'अश्वावतारी' का नामकरण किया गया.


शनिवार, 10 सितंबर 2011

अश्रु-भस्म

शांत जल से 
शांत थे मन भाव 
आये थे तुम 
आये थे अनुभाव 

शांत मन में 
सतत दर्शन चाव 
स्वर नहीं बन पाये 
मन के भाव

जल गये सब 
जड़ अहं के भाव
बह गया मन 
मैल - प्रेम बहाव

लगाव से 
विलगाव तक का 'गाव'
दृग तड़ित करता 
कभी करता अश्रु-स्राव

प्रेम - मिलना
प्रेम - पिय अभाव
प्रेम में आते
दोनों पड़ाव

सतत चिंतन
प्रेम की है रस्म
दिव्य औषध
बनते अश्रु-भस्म.
_________________ 
*गाव ........ गाने की क्रिया