गैया जातीं कूड़ाघर
रोटी खातीं हैं घर-घर
बीच रास्ते सुस्तातीं
नहीं किसी की रहे खबर।
यही हाल है नगर-नगर
कुत्तों की भी यही डगर
बोरा लादे कुछ बच्चे
बू का जिनपर नहीं असर!
छोड़ा था जो थाली में
नहीं गया जो नाली में
भूखा जिसकी लालच में
नहीं छोड़ता कोर कसर।
जो हमने कागज़ फाड़े
डस्टबीन बिस्तर झाड़े
किया इकट्ठा पिछवाड़े
खत्म हुआ उपयोग सफर।
'क' से होता कूड़ाघर
'ख' से सबकी रखो खबर
'ग' से गैया गोबर कर
'घ' से
घूमो जा घर-घर।
7 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-02-2017) को "कूटनीति की बात" (चर्चा अंक-2883) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इतना बढ़िया लेख पोस्ट करने के लिए धन्यवाद! अच्छा काम करते रहें!। इस अद्भुत लेख के लिए धन्यवाद ~Rajasthan Ration Card suchi
webinhindi
अपने इस पोस्ट के माध्यम से बहुत ही सुंदर जानकारी दी है। आपकी बरनन श्रेष्ठ है। इस पोस्ट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत अच्छा लेख है
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