खिलने में हो लावण्य भंग
दिखने में सबको लगे भली।
पिय दर्शन से रतनार रंग
हो जाता कनक-कपोल-लली*।
नत नयन मंद मुस्कानों की
अवगुंठन की कहलाति अली**।
दिखने में सबको लगे भली।
पिय दर्शन से रतनार रंग
हो जाता कनक-कपोल-लली*।
नत नयन मंद मुस्कानों की
अवगुंठन की कहलाति अली**।
पुरुषों के भ्रमर-लोचनों को
लगती रसदार कपोल-कली ।
*कपोल-लली — लज्जा.
**अली — सखी.