शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

उत्पादक रसों में मिलने वाले चार उत्पत्ति-हेतुत्व

मित्र 
मैं जानता हूँ कि आप अकेले में छिपकर ही घूमना पसंद करते हो. 
फिर भी मैं आपकी स्मृति को साथ लेकर इस काव्य जगत में घूमता हूँ. 
आपसे पिछली कक्षा में चार मूल रसों से उत्पन्न चार अन्य रसों के बारे में चर्चा की थी. 
आज उसी बात को कुछ आगे बढाता हूँ. 

नाट्यशास्त्र के व्याख्याकार अभिनव गुप्त ने चार उत्पादक रसों में क्रमशः चार प्रकार का उत्पत्ति-हेतुत्व बताया है.  [उत्पत्ति-हेतुत्व मतलब उत्पत्ति के कारण] 

[१] इसमें प्रथम प्रकार का उत्पत्ति हेतुत्व 
आभास अथवा अनुकृति से सम्बंधित कहा गया है. यह शृंगार में रहता है. 
उदाहरण के लिये 
एक वृद्ध एवं विकलांग नायक तथा षोडशी नायिका का शृंगार तदाभास मात्र बनकर रह जाता है. और उससे रति न उत्पन्न होकर हास ही उत्पन्न होता है. 
इसी से यहाँ शृंगार को हास्य का उत्पादक कहा गया है. 
[सरल उदाहरण : एक बूढ़ा आदमी जवान बनने के सभी हथकंडे अपनाकर किसी किशोरी से प्रेम की क्रियाओं में लिप्त दिखे तो वह हास्यास्पद हो ही जाता है. वह समाज में हास्य की वजह बनता है.] अब समझे गये ना कि शृंगार से हास्य पैदा होता है. 

[२] द्वितीय प्रकार का उत्पत्ति हेतुत्व फल से सम्बंधित कहा गया है. इसकी स्थिति रौद्र में देखी जा सकती है. रौद्र रस का फल या परिणाम किसी का वध या बंधन आदि होता है. ये वध तथा बंधन आदि पीड़ित पक्ष के लिये करुणास्पद हो जाते हैं. इसी से रौद्र से करुण की उत्पत्ति माननी चाहिए.
[सरल उदाहरण : यदि गृह-कलेश के चलते किसी पति ने क्रोध में अपनी पत्नी की ह्त्या कर दी तब ससुराल पक्ष में अथवा सभी सामाजिक व्यक्तियों में शौक (करुण रस) की उपस्थिति देखी जायेगी.] तो समझ गये ना कि रौद्र से करुण जन्म लेता है. 

[३] तृतीय प्रकार का उत्पत्ति-हेतुत्व भी यद्यपि फल से ही सम्बंधित है, पर यह रौद्र वाले उत्पत्ति-हेतुत्व से भिन्न है. इसमें एक रस दूसरे रस को ही फल मानकर प्रवृत्त होता है. इसका उदाहरण वीर रस है, जो अपने उत्साह से जगत को विस्मित करने के ही लिये प्रयुक्त होता है, और फल रूप में अदभुत रस को जन्म देता है. 
[सरल उदाहरण : मुम्बई के ताज हमले में भारतीय कमांडों ने आतंकवादियों को न केवल घुसकर मारा अपितु एक को ज़िंदा पकड़ भी लिया. इस घटना के सीधे प्रसारण ने समस्त भारतीयों के मन में विस्मय का संचार कर दिया.] इस तरह सैनिकों के वीर कर्म को देखकर टीवी दर्शकों के मन में 'वाह-वाह करता हुआ' अदभुत रस अवतरित हुआ. 

एक बात और मित्र, रौद्र और वीर में अंतर समझ लेना जरूरी है ..... जहाँ वीर रस में केवल अपने उत्साह से जगत को अचंभित करना फल माना जाता है वहीं रौद्र रस में शत्रु वध आदि को ही फल समझा जाता है. एक में केवल अपना कौशल दिखाना उद्देश्य है दूसरे में अनिष्ट कर देना ही उद्देश्य है. 

[४] मित्र आपका प्रश्न था कि वीभत्स को कैसे भयानक का उत्पादक कहा गया है? 
अभिनव ने चतुर्थ उत्पत्ति-हेतुत्व को समान-विभावत्व से सम्बंधित बताया है. इसकी स्थिति वीभत्स में देखी जा सकती है. वीभत्स रस के रुधिर-प्रवाह आदि विभाव, मरण, मूर्च्छा आदि व्यभिचारी तथा मुख सिकोड़ना आदि अनुभाव भयानक में भी होते हैं. अर्थात अंगों का काटना तथा खून का बहना आदि देखकर एक पक्ष में भय की भी उत्पत्ति होती है. इसी कारण से वीभत्स रस को भयानक का उत्पादक कहा गया है. 
हाँ यह बात सही है कि हर बार हमारी घृणा (जुगुप्सा) भय में नहीं बदलती. फिर भी दोनों के विभाव, अनुभाव और संचारी भाव एक समान ही हैं. अगली कक्षा में इनके बारे में विस्तार से बताऊँगा.
[सरल उदाहरण : किसी घायल के नासूरों को देखकर अथवा किसी कोढ़ी के गलते अंगों को देखकर अनायास किसी स्वस्थ व्यक्ति के मन में घृणा के भाव आ सकते हैं और परिस्थितिवश  उसे रात्रि को उसके पास रुकना पड़े तो वह भाव भय में भी बदल सकता है.] तो इस तरह वीभत्स से भयानक रस की उत्पत्ति होती है.