श्याम लोचन विस्फारित लोल
मधुर लगते तेरे सब बोल
गीत गाते जो तुम चुपचाप
सुना करता कानों को खोल.
याद है मुझको पहली बार
छींट से देकर मैंने चार
किये थे अपने दोनों नयन
आपसे खुलवा चख के द्वार.
घने नभ में छाये थे मेघ
टपाटप बूँदों को मैं देख
रहा था, तेरा मुख अम्लान
तुरत चमकी चपला-सी रेख.
[गगन में मेघ घिरते हैं, किसी की याद घिरती है... ...अज्ञेय]