शनिवार, 4 सितंबर 2010

प्रेमोन्माद

'राहत' 
कैसे पाऊँ दुःख में 
आँसू सूखे खेवक रूठे 
नयनों की नैया डूब रही 
पलकों के बीच भँवर में. 


'आहत' 
तस्वीरें रेंग रहीं 
तन्वंगी आशाएँ बनकर 
तम, छाया है या निशामयी 
जीवन ठहरा है मन पर?


'चाहत' 
की चमड़ी ह्रदय से 
उतरी है तेरी यादों की 
मन पर मांसज-सी चिपकन है 
चमड़ी चढ़ती उन्मादों की. 



[प्रेम में असफल हुए एक पागल-प्रेमी की मनोदशा का चित्र]
इसमें कुछ पंक्तियों में अनुप्रास का छठा भेद 'अन्त्यारम्भ अनुप्रास' है.