हे चपल बालिके ! मस्तक पर
आकर क्यों टेढ़ी चाल चलो?
क्यों निज रसमय अभिशापों से
वृद्धावस्था का जाल बुनो?
हे व्याल प्रिये ! डस छोड़ दिया.
तुमने तन में विष घोल दिया.
यादों के दुर्दिन द्वारों को
क्यों निर्मम होकर खोल दिया?
अरी भ्रू मध्य ठहरी रेखा !
अप्सरा रूप तुममें देखा.
तुमने आशा बनकर, मुझको
ठग लिया, छली, मिथ्या लेखा !
[इस बार केवल कविता, चिंता के कारण कुछ सूझ नहीं रहा.]