[पुत्री की विदायी पर]
दूर हो जाएगा खुद आप
हमारे क़दमों से चुपचाप
पगों का वो प्यारा पदचाप
रहा अब तक जो मेरे पास
कमी उसकी होवेगी आज़
समाहित होगा हर्षोल्लास
भवन में शांत-व्यथित पद नाद.
हास कितना दुखदायी आज़
खुशी कितनी पीड़ा में आज़
थरथराते मेरे संवाद
विदा कैसे होगी वर साथ
वधु कैसे सखियों को छोड़
जायेगी घर से कैसे दूर
मिला अब तक जो घर में नेह
पिया से पावेगी — संदेह!
मौन को तोड़ आज़ निज नाद
खूब रोवेगा जमकर आज़
किसी के घर की गुड़िया आज़
बनेगी दूजे घर की लाज.
खुशी के अवसर के पश्चात
पिता के नयनों से दिनरात
अश्रुओं की होगी बरसात
कहूँ मैं कैसे अपनी बात?
अभी हँसते दिखते जो नयन
भीग जायेंगे सारे, अयन
पुनः हो जाएगा चिर मौन
दशक-द्वय पहले जैसी पौन
बहेगी, फिर से आँगन में
पिता-माँ कहवेगा नित कौन?
पिता के ह्रदय के उदगार
रूप लेते हैं जब साकार
स्वतः करता वो ही अभिसार
नहीं यौतुक हैं ना उपहार.