त्रय दिवस बीतने बाद प्रिये!
कर रहा स्मृति को लिपिबद्ध.
मैं शुष्क प्रेम अपने वाले
कुछ तत्त्व दिखा देता हूँ सद्य.
त्वम वस्त्र पुराने नवल सभी
कर-अधर द्वयं के संगी हैं.
एकांत, श्रांत, मन भ्रांत कभी
होता तो मोचन अंगी हैं.
तलहटी पाद पीड़ा में भी
तुम हुए समाहित सेवा से.
स्मृति आज़ कर रही तुमसे नेह
जुट गये विषय अच्छे-खासे.
______________________
कविता की पृष्ठभूमि :
मेरी पत्नी को मुझसे शिकायत रही कि मैंने कभी कोई कविता उनपर नहीं लिखी. आज़ मुझे एक डायरी मिल ही गयी जिसमें उनपर कुछ ऐसा लिखा था जो उनकी दृष्टि से छिपा रह गया था. बात उस समय की है जब वे किसी कारणवश विवाह के प्रथम वर्ष में ही अपने जन्म-घर गई हुई थीं. तीन दिवस बीत चुके थे, मन मंद-मंद कराह कर रहा था. तलवों में हो रही पीड़ा किसी की स्मृति का संबल लिये थी.
+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
कवि-कोटियाँ - 2
काव्य सेवन के आधार पर भावक या आलोचक के चार भेद माने गये हैं. आरोचकी, सतृणाभ्यवहारी, मत्सरी और तत्त्वाभिनिवेशी.
आरोचकी —
वह है जिसे अन्य किसी का काव्य अच्छा नहीं लगता.
सतृणाभ्यवहारी —
वह है जो समस्त कविता कही जाने वाली छंदोबद्ध रचना को पढ़ता है.
मत्सरी —
वह है जो दूसरों के उत्तम काव्य को न पढ़ता है और न सुनकर प्रशंसा करता है, केवल दोषों को देखता है.
तत्त्वाभिनिवेशी —
वह है जो काव्य के तत्त्व में प्रवेश कर उसे पहचानता और ग्रहण करता है.