रविवार, 6 मार्च 2011

आपके घर की हवा चली

आपके घर की हवा चली 
मिली राहत हेमंत टली 
पिकानद* हल्दी अंगों पर 
लगाकर लगती है मनचली. 

शिशिर तो खेल रहा स्वच्छंद 
बहिन मुख पर मलता हैं रंग 
सभी को छूट मिली है आज़ 
फाग खेलन की हो निर्बन्ध. 

मुझे मदमत्त कर रही है 
आपको छूकर आयी पौन.
कौन आलिंगन देगा आज़ 
पिया बैठी है होकर मौन. 

सुहाता वसन आपका आज़ 
कली खिलती हैं सारी साज 
देह को, फिर से आयी लाज 
राज करता है अब ऋतुराज. 

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*पिकानद = बसंत ऋतु