उतर धरती पर चला अनंग
सुंदरी रति भी उसके संग।
बहिन भैया का था त्योहार
'सलूनो' देख हो गए दंग।
चलो देखें चलकर कुछ गेह
हमारे लिए कौन सी देह
पड़ी है रिक्त आज परिवाद
सोचते करें तनिक संदेह।
कौन किसको कितना कैसे
कर रहा है अंतर से नेह।
मधुरता सच्ची है या मृषा
प्रयत कितना है कितना हेय।
जोहती देखी भैया बाट
बहिन बैठी थी खोल कपाट
प्रतीक्षा कर परियात हुई
बाँध राखी कर तिलक ललाट।
प्रकृति तरु के कर में नवपात
लहरियाँ सर वर में जलजात।
दृगों को पलकों की प्यारी
दृष्टि राखी बाँधे अवदात।
पाणि-पल्लव बहिना के आज
कलाची को भैया की साज
पा रहे हैं प्यारे उपहार
सुमन राखी वाला ऋतुराज।
दिवस भर घूमे रती अनंग
लालि संध्या का श्यामल अंग
हुआ, बोला वसुधा से चंद
– "सलूनो है पूनो के संग।"