[कच-देवयानी का एक प्रकरण : जिसमें कच के देवयानी के प्रति मनोभाव]
तुम एक अगर होती तो मैं
तुमसे ही कर लेता परिणय.
खुद में नारी के रूप सभी
कर लिये आपने पर संचय.
तुझमें देखूँ मैं कौन रूप
मैं असमंजस में बना स्तूप.
तुमको छाया मानूँ अथवा
मैं मानूँ तुमको कड़ी धूप.
मैं दो नदियों के बीच मौन
संगम जैसी पावन धारा.
तुम मलयगिरी की हो सुगंध
मैं हूँ व्योम गंधित तारा.