सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

जो नहीं कभी सोचा मैंने

जो नहीं कभी सोचा मैंने 
वो भी तुमने कर दिखलाया 
समझा कीचड़ में कमल खिला 
भ्रम था मेरा तम था छाया. 


सरिता तुमको समझा मैंने 
पावन जल की पाया नाला. 
सविता प्राची की समझ तुम्हें 
कपटी मन की पाया बाला. 


कवि ने तुमको कविता समझा 
समझा तुमको जीवन दाता. 
पर यहीं भयानक भूल हुई 
निकली तुम निज काली माता.