बुधवार, 28 अप्रैल 2010

विपरीत से तुम सीध में आओ







विपरीत से तुम सीध में आओ.
अरी! पीठ न तुम मुझको दिखाओ.
मैं तुम्हें बिन देखकर पहचान लेता हूँ.
कल्पना से मैं नयन का काम लेता हूँ.
एक बार फिर कवि से आँख मिलाओ.
अयि! मुझे तुम नेह का फिर गीत सुनाओ.
कल्पना-विमान फिर से भेज देता हूँ.
"कंठ में आना" — तुम्हें सन्देश देता हूँ.
कल्पना-विमान पर तुम बैठ आ जाओ.
अयि! प्रिय कविते! कवि ह्रदय में बस जाओ.
जिह्व का आसन तुम्हें उपहार देता हूँ.
बस प्रिये! मैं आपसे रस-प्यार लेता हूँ.