फिर से कर जाना चाहता है अंतर, मौन में प्रविष्ट.
आचरण जब होने लगता है अति-शिष्ट या विशिष्ट.
अथवा तनावों के मध्य होने लगता है संबंध क्लिष्ट.
निर्वाह न कर सकेगा स्नेह का अंतर हमारा, मेरे इष्ट.
करना पड़ता है विवशता में एकपक्षीय व्यवहार का अनिष्ट.
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कवि-कोटियाँ - 3
प्रतिभा और व्युत्पत्ति के दोनों ही के आधार पर राजशेखर [संस्कृत काव्यशास्त्री] ने तीन भेद किये हैं.
[१] शास्त्र कवि — इस तरह के कवियों में अध्ययन और ज्ञान अधिक रहता है, किन्तु रस और भाव की सम्पत्ति अधिक नहीं रहती.
[२] काव्य कवि — इस तरह के कवियों में में कवित्व अधिक रहता है, अध्ययन और ज्ञान उतना नहीं रहता जितना कि शास्त्र कवि में रहता है.
[३] उभय कवि — इस तरह के कवियों में दोनों ही बातों का समान महत्व रहता है.
........ इस तरह उभय कवि सर्वोत्तम और शास्त्र कवि केवल अपनी ही दृष्टि में उत्तम समझे जाते हैं शास्त्र कवि आत्ममुग्ध अधिक होते हैं. हमेशा छंद और काव्य-गुणों व दोषों में उलझे रहकर कविता का रसपान न स्वयं कर पाते हैं न ही रसिकों को लेने देते हैं. फिर भी इनकी अहमियत शास्त्रीय ज्ञान के कारण विद्वानों में बनी रहती है. काव्य कवियों को चिंता नहीं होती कि वे अपने भावों को किस छंद में ढाल रहे हैं. मंजे हुए इस तरह के कवि स्वतः ही अपने भावानुकूल छंद का चयन कर अपनी अभिव्यक्ति-ऊर्जा रेचित करते हैं.
[ कवि कोटियों का अन्य आधारों पर अगले अध्याय में विश्लेषण किया जाएगा. ]