साथ-साथ रह सकुचाते.
मिलने को गुरु की शाला में
एक साथ अब ना आते.
पूर्व दिशा में बिजली चमके
पश्चिम में बादल छाते.
वर्षा होती ठीक मध्य में
प्यासे दोनों रह जाते.
पूर्व दिशा की शुष्क शिला ने
भेदभाव पहचान लिया.
पश्चिम दिक् के सैकत-झरने
ने मरीचिका गान किया.
स्नेह कौन से स्वर में उनसे
ऋण-चुकता संवाद करे.
इतना बोझ लदा है मन पर
चुपके-चुपके आह भरे.