बुधवार, 30 दिसंबर 2009

kisi ka saal ye nootan

किसी का साल ये नूतन
पिचकता पेट
"भूखा"
बन गया आदर्श मेरा अब.

मरूंगा
"भूख से" ?
या, "चिलचिलाती धुप (dhoop) से" ?
- मैं कब?
मरें हैं अनगिनित निर्धन
वसन से हीन भिक्षुक बन
कटोरा हाथ में ले मांगते
फिरते रहे जो धन.

विवश हो देखती माता
वसन से हीन कन्याएं
मरा परिवार में कोई
वसन-शव खींच ले आये.

उसी से ढांकते हैं तन
उसी से ढांकते यौवन
उसी से कर रहे देखो
सुरक्षित स्वयं का जीवन.

दिखायेगी अभी वर्षा
निराले ढंग आकर के
सुनाएंगी अभी उनको
छतें मल्हार गाकर के.

हा! कैसे कटेगी रात
कटेगा किस तरह जीवन
जलेगा किस तरह चूल्हा
कहाँ पर, फिर बिना ईंधन.

कड़कती ठण्ड में जाने
मरा!* इस बार होगा क्या
मरा पिछले बरस बूढ़ा
मरेगी इस बरस बुढ़िया.

बना फिर जूट के कपडे
बचायेंगे, छिपा बचपन
कटेगा इस तरह फिर से
किसी का साल ये नूतन.

बुधवार, 25 नवंबर 2009

साहित्य प्रेमियों !_पुनश्च संबोधन

इस ब्लॉग का निर्माण आलंकारिक कवितायों को आपके सम्मुख परोसने के लिए किया गया है.
अनुरोध है कि आज से आप इस ब्लॉग का अनुसरण करते हुए अपनी प्रतिक्रियाओं को अवश्य प्रेषित करेंगे.

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

साहित्य प्रेमियो !

मैं आज से नए-पुराने अलंकारों की कवितायें इस ब्लॉग पर दिया करूँगा. 
आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहा करेगी.