श्लिष्ट वक्रोक्ति :
उलट-पलट कर भाव ने, लिया अंत संन्यास।
छंद शर्त को मान के, सिकुड़े शैली* व्यास*।।
करुण हास्य [ठेस] :
प्रतियोगी बन आ गये, हम कविता के देस।
अब ना जाने क्या मिले, ठाले बैठे ठेस।।
काम्य भक्ति [आशा] :
'रविकर' से दोहे रचूँ, 'स्वर्णकार' से शेर।
मद 'नवीन' से छंद का, होगा देर-सबेर।।
चातकी शृंगार [सुन्दरता] :
मन की सुन्दरता छिपी, तन के भीतर जाय।
खोज करूँ अनुमान से, नित टकटकी लगाय।।
प्रतिक्रियात्मक दोहा :
पहलवान भी जानता, मिट्टी की सौंधास।
नित्य अखाड़े में करे, कुश्ती के अभ्यास।।
[27-09-2012]