मिल गयी हमारी छिपी बात
लज्जा से गुंठित थे कपाट.
तेरी सखि शोधक बहुत तेज़
रखते तुम क्यों नज़रें सपाट?
हो सरल हृदय करुणाभिसिक्त
दीठी सखि की है स्यात तिक्त.
पिछली कविता का भेद खोल
कारण जाना 'मम स्नेह रिक्त'.*
बलहीन कलम कविता विहीन
हत मीन नयन मेरी ज़मीन.
नट बने भाव आते-जाते.
जीवट पर तेरे है यकीन.