अहा! हो गई अब हृदय में
दुःख चिंता शंका निर्मूल
हृत-वितान में घूमा करती
दिव करने वाली सित धूल
नहीं शकुन-अपशकुन जानती
अड़चन हो चाहे दिक् शूल।
जब आनंद गंध फ़ैली हो
बन्द नहीं हो सकते फूल । [पुनः लेखन]
यह ब्लॉग मूलतः आलंकारिक काव्य को फिर से प्रतिष्ठापित करने को निर्मित किया गया है। इसमें मुख्यतः शृंगार रस के साथी प्रेयान, वात्सल्य, भक्ति, सख्य रसों के उदाहरण भरपूर संख्या में दिए जायेंगे। भावों को अलग ढंग से व्यक्त करना मुझे शुरू से रुचता रहा है। इसलिये कहीं-कहीं भाव जटिलता में चित्रात्मकता मिलेगी। सो उसे समय-समय पर व्याख्यायित करने का सोचा है। यह मेरा दीर्घसूत्री कार्यक्रम है।