शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

वासंतिक मान

प्रथम बार
था मौन संयमित
कोकिल का कल गान
संभवतः कर रहा
पिकानद आने का अपमान।
 
अंधकार
छिपकर भी विचलित
खोता था पहचान
उषा-सुंदरी आयी
करता अंगहीन प्रस्थान।
 
शयन-कक्ष
में रमणी व्याकुल
करने को वपु-दान
पर प्रियतम से कर बैठी थी
वह पहले ही मान।
 
कोप-भवन
से निकल कोकिले!
पंचम स्वर आलाप
मान मिटे रमणी आवे
पी आलिंगन में आप।

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अतुलनीय वर्णन ....वासंतिक भाव

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अहम हर सुख को हर लेता है ....सुंदर रचना

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

अति सुन्दर.

Alpana Verma ने कहा…

अंधकार छिपकर भी विचलित खोता था पहचान उषा-सुंदरी आयी करता अंगहीन प्रस्थान।
इन पंक्तियों ने ख़ास आकर्षित किया.
बसंत के आगमन का प्रभाव देर-सवेर पड़ेगा ही .. कोयल भी गायेगी ..रूठी रमणी भी मान जायेगी.
बहतु सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

Ramakant Singh ने कहा…

शयन-कक्ष
में रमणी व्याकुल
करने को वपु-दान
पर प्रियतम से कर बैठी थी
वह पहले ही मान।

कोप-भवन
से निकल कोकिले!
पंचम स्वर आलाप
मान मिटे रमणी आवे
पी आलिंगन में आप।

निःशब्द करती रचना

Ayodhya Prasad ने कहा…

बहुत सुन्दर वर्णन ...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ आदरणीय डॉ. मोनिका जी, 'संतुलित सराहना' विषय में छिपे सौन्दर्य को उद्घाटित करती है। किसी भी रचना पर आपकी उपस्थिति से इसका अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…


@ आदरणीया संगीता स्वरूप जी, आपकी 'सारगर्भित टिप्पणी' कविता के हर प्रयास पर होती है। वह चाहे नवोदित कवि का अपरिपक्व पहला प्रयास हो अथवा सारस्वत कवि का पारंगत उद्गार हो।'

हम हर सुख को हर लेना चाहते हैं, लेकिन बाजी अहम् मार लेता है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ निहार रंजन जी,

दर्शन प्राशन पर आकर वासंतिक मान को सराहना आपकी सहृदयता को दर्शाता है।

मात्र निहार कर मन का रंजन कर लेना ... सबके बूते की बात नहीं।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ आदरणीय रमाकांत जी,

काव्य पंक्तियों के पुनः उच्चारण से प्रतीत हो रहा है वास्तव में आप 'निःशब्द हुए' अन्यथा 'कुछ तो कहते' :)

आपकी आलोचक दृष्टि का कायल हूँ। आगे प्रयास करूँगा कुछ त्रुटियाँ छोड़कर।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…


@ प्रिय अ. प्रसाद जी,

आपकी टिप्पणी एक हाथ ले एक हाथ दे का परिणाम तो नहीं?

Rajesh Kumari ने कहा…

आज बहुत समय बाद अतुल जी आपके ब्लॉग पर आना हुआ इतनी बेहतरीन रचनाओं को मैंने आज तक मिस किया मुझे खेद हो रहा है आपका लेखन पढ़ना साहित्य सागर में डुबकियाँ लगाने जैसा है धीरे धीरे सभी रचनाए पढ़ना चाहूँगी बहुत बहुत बढ़ाई इस वासंतिक प्रस्तुति पर|