निःशब्द बोल
मैं तो सोच रहा था बोलूँ पर तुम ही थे मौन पिये!
शब्द नहीं थे मुख में मेरे फिर भी तुमसे बोल दिये.
'पियो पिये' संकेत किया मैंने पय पीने के लिये.
नहीं तुम्हें इतनी आशा थी मुझसे मैं कुछ बोलूँगा.
इसीलिए मुख फेर लिया पहले से ही आभास लिये.
रही सदा मुझ पर निराशता* तुमको देने के लिये.
आज़ स्वयं देने को सब कुछ बैठा हूँ अफ़सोस किये.
सोच रहा अब तक मैं कैसे था बिन प्राणों के जिये.
कभी-कभी तो मिलना होता है तुमसे उल्लास लिये.
निराशता — सही शब्द निराशा.
8 टिप्पणियां:
सुभ-मध्यानम,
पहली बार दिखे जब तुम, थे हम-तुम अनायास मिले
तब से आज, अभीतक, हैं हम-तुम सायास मिले..
प्रणाम.
कुछ तो सम्मान कीजिए, बसंत का.
शुभकामना ही व्यक्त कर सकते हैं हम तो!
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@ मित्र सञ्जय आपके भाव बेहद मनमोहक हैं.
आपके भावों को यदि कुछ इस तरह कहें तो ...
"पहली बार दिखे जब तुम थे,
तब हम थे अनायास मिले.
तब से आज़ अभी तक हम-तुम,
व्याज सहित सायास मिले."
व्याज मतलब 'बहाने'
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कुछ तो सम्मान कीजिए, बसंत का.
@
सत सुन्दरता का पान करूँ.
केवल बसंत का गान करूँ.
आगंतुक अंतर्मन न पढ़े
तब कैसे उठ सम्मान करूँ.
प्रिय पग आहट भी कान करूँ.
मिलती उपेक्षा 'ना' न करूँ.
चुपचाप कोई आये-जाये
तब कैसे हृत का दान करूँ.
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शुभकामना ही व्यक्त कर सकते हैं हम तो!
@ आपका शुभ कामना स्वर
हरित हो जाएगा अब ज्वर.
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@-"कभी-कभी तो मिलना होता है तुमसे उल्लास लिये"....
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उल्लास के पल कभी-कभी ही आते हैं ,
Cherish the moments !
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बहुत ख़ूब....आपकी रचना आपकी प्रतिष्ठा अनुरूप है। रचना बेहद पसंद आई।
मुझे 'काव्य सृजन' का ज़्याद ज्ञान नहीं है लेकिन 'काव्य' पढ़ने का शौक़ है इसीलिए इतना ज़रूर कह सकता हू कि आपका "काव्य सृजन" उत्तम कोटि का है। ये गुण हर किसी में नहीं होता है।
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